रिमिसियर बनाम सब-ब्रोकर
रिमिसियर बनाम सब-ब्रोकर दोनो में से कौन सा बेहतर है? यह दोनों ही स्टॉकब्रोकर द्वारा पेश किए जाने वाले दो अलग-अलग बिजनेस मॉडल हैं। यह मॉडल उन लोगों के लिए है जो स्टॉकब्रोकर के साथ व्यापार करने के लिए जुड़ना चाहते हैं।
हालाँकि, दोनों मॉडलों का मुख्य मकसद एक ही है कि मुख्य ब्रोकर को बिजनेस करने के लिए अधिक ग्राहक प्राप्त हो लेकिन फिर इन दोनों के बीच अंतर क्या हैं?
इस लेख में, हम रिमिसियर बनाम सब-ब्रोकर के बीच के मुख्य अंतर जैसे इसका अर्थ, प्रारंभिक निवेश / सिक्योरिटी डिपोजिट, रेवेन्यू शेयरिंग रेश्यो आदि को समझने की कोशिश करेंगे ।
आइए दोनों मॉडलों के बीच मुख्य अंतर के बीच चर्चा के साथ शुरुआत करें।
रिमिसियर बनाम सब-ब्रोकर: मुख्य अंतर
उदाहरण के लिए रिमिसियर बनाम सब-ब्रोकर बिजनेस मॉडल के बीच के कुछ मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:
विचार क्षेत्र | सब-ब्रोकर | रिमिसियर |
अर्थ | मुख्य ब्रोकर की एक विस्तार शाखा की तरह कार्य करता है। | व्यक्तिगत रूप से काम करता है और प्रत्येक लेनदेन के लिए कमीशन प्राप्त करता है। |
कार्य | ग्राहक अधिग्रहण से ग्राहक प्रबंधन तक सभी कार्य करता है। | केवल ग्राहक अधिग्रहण का कार्य करता है। |
ऑफिश की आवश्यकता | प्रत्येक स्टॉकब्रोकर को एक ऑफिश की आवश्यकता हो सकती है। | किसी ऑफिश की आवश्यकता नहीं होती। |
प्रारंभिक निवेश / सुरक्षा के तोर पर जमा की जाने वाली राशि | ₹50,000 - ₹3,00,000 | बहुत ही कम राशि या फिर कोई भी राशि जमा करवाने की आवश्यकता नहीं होती है। |
रेवेन्यू साझाकरण अनुपात | 50%-80% | 10%-30% |
ज़िम्मेदारी | एक रीमिसियर की तुलना में बहुत अधिक काम होता है या हम ये भी बोल सकते है लगभग ब्रोकर के समान। | काम का बोझ बहुत कम होता है। |
काम का तरीक़ा | फुलटाइम काम करना होता है. | ज्यादातर लोग अतिरिक्त कमाई करने के लिए इसमें पार्टटाइम नौकरी के दृष्टिकोण के साथ काम करते है। |
रिमिसियर और सब-ब्रोकर: अर्थ
एक सब-ब्रोकर उस स्टॉक एक्सचेंज के ट्रेडिग सदस्य का एक एजेंट होता है जो काम करने के लिए अपना ऑफिस स्थापित करने में मदद करता है। हम यह भी कह सकते हैं, की वह उस स्टॉकब्रोकर की एक विस्तार शाखा की तरह है जो ग्राहकों की ओर से ट्रेड करता है और उसके द्वारा उत्पन्न ब्रोकरेज पर एक निश्चित प्रतिशत कमीशन प्राप्त करता है।
एक रीमिसियर भी ब्रोकिग कंपनी के एजेंट के रूप में ही काम करता है, जो की स्वतंत्र रूप से काम करता है और अपने द्वारा किए हुए प्रत्येक लेनदेन के लिए एक निश्चित प्रतिशत कमीशन प्राप्त करता है।
रिमिसियर बनाम सब–ब्रोकर: कार्य
एक सब-ब्रोकर का मुख्य कार्य अपने ग्राहक आधार को बढ़ाकर अपने स्टॉकब्रोकर का समर्थन करना होता है। इसके साथ उसे उस ब्रोकिंग हाउस के हर कार्य को करना होता है जैसे ग्राहक़ अधिग्रहण करना , अधिक रेवेन्यू उत्पन करने के लिए ग्राहक को प्रेरित करना और अगर कभी किसी ग्राहक को कोई समस्या आए तो उसे हल करना।
एक रिमिसियर के पास केवल ग्राहक़ अधिग्रहण का ही कार्य होता है और इसके बाद के सारे कार्य स्टॉकब्रोकर को करने होते है।
रिमिसियर बनाम सब-ब्रोकर: ऑफिस की आवश्यकता
एक सब-ब्रोकर अपने स्टॉकब्रोकर के लगभग सभी कार्य करता है, इसलिए उसे एक ऑफिस स्थापित करने की आवश्यकता होती है जहां से वो अपने काम कर सके। ऑफिस सेट-अप करने के लिए आवश्यक न्यूनतम क्षेत्र का उल्लेख दोनों पक्षों के बीच हुए सब-ब्रोकर समझौते में किया जाता है। इस ऑफिस का निर्मान उस एरिया के मुख्य लोकेशन पर होनी चाहिए।
एक रिमिसियर को अपना कार्य करने के लिए किसी ऑफिस की आवश्यकता नहीं होती। वे स्टॉकब्रोकर के ऑफिस में बैठकर भी काम कर सकते हैं। और साथ ही, उसी ऑफिस में वे अपने ग्राहकों से भी मिल सकते हैं।
रिमिसियर बनाम सब–ब्रोकर: प्रारंभ में सिक्योरिटी डिपोजिट
सब-ब्रोकिग शुरू करने के लिए, प्रारंभ में ही आपको ब्रोकर के पास कुछ सिक्योरिटी डिपोजिट/ शुरुआती निवेश के तोर पर कुछ राशि जमा करना आवश्यक होता है। आम तौर पर, इस राशि की सीमा ₹ 50,000 – ₹3,00,000 होती है। एक सब-ब्रोकर का रेवेन्यू शेयरिंग रेश्यो कई ब्रोकेर के मामले में कुछ हद तक सिक्योरिटी डिपोजिट पर निर्भर करता है।
आम तौर पर, एक रिमिसियर को ₹10,000 या इससे थोड़ी अधिक राशि सुरक्षा के तोर पर जमा करवाने की आवश्यकता होती है। जबकि कुछ स्टॉकब्रोकर रिमिसियर से किसी भी तरह की कोई सुरक्षा राशि या प्रारंभिक निवेश की मांग नहीं करते हैं, क्योंकि उनके काम में कोई जोखिम नही होता है।
रिमिसियर बनाम सब–ब्रोकर: काम की ज़िम्मेदारी
एक सब-ब्रोकर स्टॉकब्रोकर की तरह ही है। उसे अपने ग्राहक के लिए हर चीज का प्रबंधन करना होता है। उनकी जिम्मेदारी किसी रीमिसियर की तरह सीमित नहीं होती है। उसे कई ग्राहक बनाने और साथ ही प्रत्येक ग्राहक के साथ एक बेहतर संबंध बनाए रखने की आवश्यकता होती है ताकि वे लंबे समय तक एक ही ब्रोकर के साथ काम कर सकें।
दूसरी ओर, एक रीमिसियर केवल ब्रोकर के लिए ग्राहक लाने के लिए ही जिम्मेदार होता है और बाकी सारी जिम्मेदारी मुख्य ब्रोकर की होती है यानी उन ग्राहकों को लंबे समय तक अपने साथ जोड़े रखने की जिम्मेदारी ।
रिमिसियर बनाम सब–ब्रोकर: काम का तरीक़ा
जैसा की हम सब जानते ही है की एक सब-ब्रोकर के लिए ये कार्य एक पूरे समय के लिए ही होता है। उन्हें काम करने के लिए अपना पूरा समय ही देना होता है तभी उन्हें पूर्ण सफलता मिल सकती है। एक मुख्य ब्रोकर की तरह उनकी ज़िम्मेदारी असीमित होती है, जिसके लिए उन्हें अपना काम समय पर ख़त्म करने के लिए पूरे दिन की ज़रूरत होती है।
वही एक रीमिसियर का काम बहुत सीमित है इसलिए कुछ लोग इस मॉडल के तहत अपनी मुख्य नौकरी के साथ अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए ये काम करते हैं।
सब-ब्रोकर के फायदे
- इनके पास अपने ब्रोकर के टूल्स और टेक्नोलाॅजी रिसर्च रिपोर्टों को देखने का अधिकार होता है।
- किसी रिमिसियर की तुलना में ये बहुत अच्छा रेवेन्यू शेयरिंग प्रतिशत प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि इनपर काम की जिम्मेदारी उनसे बहुत अधिक होती है।
- इनके साथ उद्यमी बनने का एक अच्छा अवसर प्राप्त हो सकता है।
सब-ब्रोकर के नुकसान
- अपने स्वयं के रिसर्च करने के लिए बहुत समय की आवश्यकता होती है।
- प्रारंभिक निवेश और सुरक्षा के तोर पर जमा करवाने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है।
- अधिक कर्मचारियों को काम पर रखने और व्यवसाय चलाने के लिए आवश्यक कार्यालय उपकरणों पर अधिक ख़र्च करने की आवश्यकता होती है।
रिमिसियर के फायदे
- अतिरिक्त कमाई करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करते है। इसमें कोई आसानी से अपनी मुख्य नौकरी के साथ एक रिमिसियर के रूप में भी काम कर सकता है, क्योंकि इसके लिए बहुत कम समय की आवश्यकता होती है।
- ग्राहक के अधिग्रहण के बाद सारी जिम्मेदारी स्टॉकब्रोकर के कंधे पर होती है। एक रीमिसियर उसके बाद सभी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है।
- कोई भी थोड़े से या शून्य प्रारंभिक निवेश/सुरक्षा राशि के बिना भी किसी के भी साथ एक रिमिसियर के रूप में अपना काम शुरू कर सकता है।
- रिमिसियर को किसी कार्यालय की आवश्यकता नहीं होती। ये अपने मुख्य ब्रोकर के कार्यालय से या कहीं और से भी अपना काम कर सकता है।
रिमिसियर के नुकसान
- क्यूँकि इसमें काम की जिम्मेदारी बहुत सीमित होती है और काम का मुख्य हिस्सा स्टॉकब्रोकर द्वारा किया जाता है, इसलिए इसमें रेवेन्यू शेयरिंग करने का प्रतिशत बहुत कम होता है जिससे रिमिसियर को बहुत कम हिस्सा मिलता हैं।
- कुछ मामलों में तो एक रिमिसियर की काम सिर्फ़ ग्राहक को स्टॉकब्रोकर से परिचय करवाने तक ही सीमित होता है।
निष्कर्ष:
दोनो बिजनेस मॅाडल के अपने अपने फायदे और नुकसान है। यह आप पर निर्भर करता है कि आपको कौन सा मॉडल सूट करता है मतलब आपके समय और सुरक्षा राशि के अनुसार आपको किस की आवश्यकता है? आपका ग्राहक समहू कितना बड़ा है ? आदि।
इसलिए, ब्रोकिग के क्षेत्र में व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लेने से पहले, आपके पास सब-ब्रोकर और रिमिसियर मॉडल की एक स्पष्ट छवि आवश्यक होनी चाहिए। ।
यदि आप एक सब-ब्रोकर या रीमिसियर पार्टनर बनना चाहते हैं, तो उसके लिए आगे कदम बढ़ाने में हम आपकी सहायता करेंगे। जिसके लिए आप बस नीचे दिए गए फॉर्म में अपना कुछ बेसिक्स डिटेल्स भरें:
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